मुझे इसका गम नहीं की उसने फेर ली आंखे | अफसोस ये है की उसने भी , मुजरिम समझा लिया |
आंखों से आंखें मिलते हैं, दो से चार बनकर हम आप से, मिलेंगे गले का हार बनकर |